05 June 2020

जयंती विशेष

ऐसी वाणी बोलिए,मन का आपा खोए ।


औरन को शीतल करें,आपहीं शीतल होए ।।


धार्मिक एकता के प्रतीक थे संत कबीर



संत कबीर दास मध्यकाल के महान कवि थे। प्रति वर्ष ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन उनकी जयंती मनाई जाती है। इस बार यह तिथि 5 जून को है। माना जाता है कि संवत 1455 की इस पूर्णिमा को उनका जन्म हुआ था। भक्ति काल के उस दौर में कबीरदास जी ने अपना संपूर्ण जीवन समाज सुधार में लगा दिया था। कबीरपंथी इन्हें एक अलौकिक अवतारी पुरुष मानते हैं। कबीर उनके आराध्य हैं। माना जाता है कि कबीर दास जी का जन्म सन् 1398 ई के आसपास लहरतारा ताल, काशी के समक्ष हुआ था। उनके जन्म के विषय में भी अलग-अलग मत हैं। कुछ लोग उन्हें हिन्दू मानते हैं तो कुछ लोग कहते हैं कि उनका जन्म एक मुस्लिम परिवार में हुआ था। उनके जन्म को लेकर ऐसा भी वर्णन है कि वे रामानंद स्वामी के आशीर्वाद से काशी की एक ब्राह्मणी के गर्भ से जन्मे थे, जो एक विधवा थी।  कबीरदास जी की मां को भूल से रामानंद स्वामी ने पुत्रवती होने का आशीर्वाद दे दिया था। वहीं एक अन्य मतानुसार यह भी कहा जाता है कि कबीर जन्म से ही मुसलमान थे और बाद में उन्हें अपने गुरु रामानंद से हिन्दू धर्म का ज्ञान प्राप्त हुआ। कबीरदास जी देशाटन करते थे और सदैव साधु-संतों की संगति में रहते थे। 


निर्गुण ब्रह्म को मानने वाले थे कबीर
कबीर दास निर्गुण ब्रह्म के उपासक थे। वे एक ही ईश्वर को मानते थे। वे अंध विश्वास, धर्म व पूजा के नाम पर होने वाले आडंबरों के विरोधी थे। उन्होंने ब्रह्म के लिए राम, हरि आदि शब्दों का प्रयोग किया है। उनके अनुसार ब्रह्म को अन्य नामों से भी जाना जाता है। समाज को उन्होंने उन्होंने ज्ञान का मार्ग दिखाया जिसमें गुरु का महत्त्व सर्वोपरि है। कबीर स्वच्छंद विचारक थे। उन्होंने लोगों को समझाने के लिए अपनी कृति सबद, साखी और रमैनी में सरल और लोक भाषा का प्रयोग किया है।


कबीरदास ने अपना पूरा जीवन काशी में बिताया। लेकिन अपने जीवन के अंतिम समय में वे काशी को छोड़कर मगहर चले गए। कहा जाता है कि 1518 के आसपास, मगहर में उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली। उनके दोहे आज भी लोगों के मुख से सुनने को मिलते हैं।


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